भावार्थ : यह गीत एक और जहाँ पहाड़ की संघर्षशील नारी की जीवटता को दर्शाता है वहीं  दूसरी और सरकार द्वारा बिना सोचे समझे नीतियाँ बना देने की बात भी कहता है। पहाड़ की महिलाएं घास,चारे व लकड़ी के लिए वनों पर पूरी तरह निर्भर होती है। इसके लिये वह अपनी जान की बाजी भी लगाती हुई ऊंचे ऊंचे पहाड़ों और खाइयों के उपर भी चढ़ जाती है। पुराने समय में गाँव के लोगों के द्वारा ही अपने आस-पास के जंगलों को सामूहिक तरीकों से सुरक्षित करने की बहुत सटीक प्रणाली थी।। लेकिन नए वन-क़ानून लागू होने के बाद जंगलों पर सरकार ने अधिकार कर लिया और वनकर्मियों के रूप में “पहरेदार” बैठा दिए। ऐसे ही एक “पतरोल” (वन-संरक्षक) से जंगल घास काटने गई महिला की बहस हो जाती है। महिला की मजबूरी है कि उसको जंगल से घास-लकड़ी ले जानी है, तभी उसका घर चल पायेगा। पतरोल भी महिला की मजबूरी समझने के बावजूद अपना कर्तव्य कर्तव्य निभाते हुए महिला को जंगल में ना जाने की चेतावनी दे रहा है।

ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण?
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

तेरि भों मि पतरोळ कखी भि जौऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
तेरि भों मीं पतरोळ कखी भी जोंऊँ, तू ड्यूटी समाळ जंगळ बचौऊं
भेळ उन्द पोडु मीं डाळा उन्द मोरू चा जंगळ चोरु मिन घास ली जांण, गौरू भैंस्यूं थें क्या खलांण
ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं थें मिन क्या खलांण

गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
गुन्दक्याळी खुट्टी तेरि खस्स रैड़ीली, पट्ट मोरि जेलि भेळ उन्द पोड़ीली
तेरि दाथी चदीरिल, गौर-बछूरूल, सासु ससुरोंल खौळ्यूं रै जाण- जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण

बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खैरी
बण भी सरकारी तेरो मन भी सरकारी, तिन क्या सम्झिण हम लोगु कि खैरी
जब बण जौला लाखुड़ घास लोंला, और भैंसी पिजोला तब चुल्लू जगांण, नौनळ निथर भुखि सेजांण..
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण

पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
पाड़ै बेटी-ब्वार्यू कू बण ही च सारु, जणदु छौं मी भी- पर क्याजि कारू?
दया जु आली, साबन सुण्याली त नौकरी जाली मेरी छुट्टी ह्वै जांण, बाल-बच्चों मिन क्या खलाण?
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
ना जा – ना जा – ना जा हे ना जा,
ना जा – ना जा तौं भेळू पखाण, जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
आंण नि देन्दी तू सरकारि बोण, गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण
जिदेरी घसेरी बोल्यूं माण
गौर भैंस्यूं मिन क्या खलांण



पतरोल – सुनो जिद्दी घसियारन, मेरी बात मान जाओ और जंगल में मत जाओ। महिला – तुम मुझे सरकारी जंगल में आने से रोकते हो, अगर मैं घास नहीं ले गई तो मेरी गाय-भैंस भला क्या खायेंगी? महिला आगे कहती है – मैं चाहे किसी खाई में गिर कर मर जाऊं या किसी पेड़ की डाली से गिर पडूं। मुझे घास तो लेकर ही जानी है, वरना मैं अपनी गाय-भैंस को क्या खिलाउंगी? मैं कहीं भी जाऊं, तुम मेरी परवाह मत करो। अपनी नौकरी संभालो – जंगल बचाओ।

पतरोल महिला को डराते हुए कहता है – तेरा यह कोमल पैर कहीं फिसल पड़े तो किसी गहरी खाई में गिर कर मर जाओगी। फिर तुम्हारी यह घास ले जाने की चादर और दान्तुली ऐसे ही रह जायेगी। सोच लो, फिर ये गाय-भैंस और सास-ससुर किसी काम नहीं आयंगे। मेरी बात मान जाओ।

महिला पतरोल से खिन्न होकर कहती है – तुम्हारा मन भी जंगल की तरह ही सरकारी और निष्ठुर हो गया है। तुम मेरी इतनी सी बात क्यों नहीं समझ रहे हो कि जब मैं घास-लकड़ी लेकर घर जाउंगी, गाय-भैंस को घास खिलाउंगी। लकड़ी से चूल्हा जलाऊँगी। वरना मेरे बच्चों को भूखे ही सोना पडेगा।

पतरोल अपनी मजबूरी बताते हुए कहता है – मैं समझता हूँ कि पहाड़ की बेटी-बहुओं के लिए जंगल ही सब कुछ है, क्या मुझे पता नहीं है? लेकिन तुम खुद सोचो, मैंने तुम पर दया करके तुम्हे जंगल में जाने दिया, यह बात मेरे अधिकारी को पता चल गई तो नौकरी से मेरी छुट्टी हो जायेगी। मेरे भी तो बच्चे भूखे मर जायेंगे। इसलिए मेरी बात मान जाओ और घास-लकड़ी लेने के लिए इस जंगल में जाने का अपना इरादा छोड़ दो।

Essence of song : In hilly area of Uttarakhand the life of woman is not easy. Apart from lot of work she has to go to high hills to collect fodder, grass and fuel-wood.Many times those hills are dangerous and every year many women die when they go for such fodder collection. This song brings that aspect of hilly women in light. One <em>patrol</em> (Forest Guard) asks a woman not to go to forest for fodder, grass collection as those forests are under the control of government. Woman replies that she will have to go as her cattle (cows-buffalos) would not have anything to eat. Forest guard also warns her that if she accidently slips then she would surly die but woman says that she has no fear of dying. She also says to forest guard that like government he is also emotionless and does not understand the pain of her. Forest guard replies that he understands that it is important for hilly woman to go for fodder grass and fuel wood collection but he (forest guard) is a government employee and if his seniors come to know about this he would be in deep trouble.

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