नरेंद्र सिंह नेगी अपने गीतों से उत्तराखंड के समाज का यथार्थ हमारे सामने रखते रहे हैं। समय समय पर उन्होंने उत्तराखंड की राजनीति पर भी करारे व्यंग्य कसे हैं। आज हम आपके सामने ऐसा ही एक गीत प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें चुनाव के समय बड़ी बड़ी राजनैतिक पार्टियों द्वारा मतदाताओं को लुभाने के लिये शराब व धन के प्रयोग के ऊपर व्यंग्य है।
किस प्रकार लगभग सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने ले लिये विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं और चुनावी माहौल में मतदाता को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और कैसे चुनाव के बाद मतदाता फिर पुरानी अवस्था में लौट जाता है,उसी स्थिति का वर्णन इस गीत में किया गया है। विभिन्न पार्टियों के चुनाव चिंन्हों के द्वारा इस गीत का ताना-बाना बुना गया है।
इस गीत का ऑडियो-वीडियो हिमालयन फिल्म्स द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
भावार्थ : मतदाता आपस में बात करते हुए कहते हैं कि हाथ (कांग्रेस) ने हमें व्हिस्की पिलाई और फूल (भाजपा) ने रम पिलायी। छोटे दलों और निर्दलीय प्रत्याशियों ने कच्ची दारू में टरकाया हमको। वाह! ऐसे चुनाव में तो हमारे मजे ही मजे हैं, दारू और रुपया ठमाठम मिलता है।
सुबह का पैग हम घड़ी (एन.सी.पी.) के साथ पीते हैं तो दोपहर का साइकिल (सपा) में चढकर
शाम को कुर्सी (उक्रांद) में धराशायी होते हैं रात को हाथी (बसपा) में बैठ कर तड़ी (रौब) दिखाते हैं।वाह! ऐसे चुनाव में तो हमारे मजे ही मजे हैं,हम घोड़े में चढे हुए हैं और प्रत्याशी पैदल चल रहे हैं।
maya-ko-mundaro-coverयह नेतागण पल-पल में दल बदलते रहते हैं, आज इस दल में हैं तो कल उस दल में, ठीक उसी तरह आजकल हमारी भी दारू (शराब) का ब्रांड बदल रहा है। कभी सोडा में, कभी कोक में तो कभी गंगाजल में हमें शराब परोसी जा रही है। ऐसे चुनाव में तो भई ऐश ही ऐश है, जिसमें देशी, विदेशी, लोकल हर तरह की दारू हजम हो जाती है।
क्या लोकतंत्र है आजकल….. हमारे खाने के लिये मुर्गों की टांग है, बकरों की रान है, हाथ में सिगरेट है और मुंह में पान है। दीर्घजीवी हो हमारा ये ऐसा लोकतन्त्र जिसके प्रताप से ही गरीबों की शान है। हमें पहले पता नहीं था लेकिन अब चल गया है कि वोट की चोट में कितना दम है।
लो भई निपट गया चुनाव, सरकार भी बन गई, किसी का घर बसा तो कोई बर्बाद हो गया। अब नहीं दिखते पिलाने वाले कहीं, खाली हो गई बोतल और सारा नशा उतर गया। सफाचट (एन.डी. तिवारी) के राज में मौज ही मौज थी, मूंछ वाले (खण्डूरी) के राज में तो सब सुख गायब ही हो गये।